Friday, February 22, 2013

दास्ताँ -ए - जिंदगी ....

चार साल पहले इसे लिखा था ......




ये जिंदगी अश्को का एक समंदर है 

कुछ खामोशी के साथ उठती कई लहरें है 
इन पर भी कई अनकहे अल्फाज़ ठहरे है 
खुद में समेटे कई दास्तानें ये सागर है 

बढ़ रहा है शोर, तन्हाइयां घुट रही है 
सहेज कर रखी हर माला टूट रही है 
क्या रौशनी क्या अन्धेरा सब बराबर है 

मंजिलो से पहले ही हर उम्मीद भटक जाती है 
तूफानी लहरें कश्ती को भंवर में पटक जाती है 
बिखर गयी पंखुड़ियां खो गया हर मंजर है 

पार पाना नामुमकिन ये दरिया बहुत गहरा है 
हसरतो पर हालातो का बेहद सख्त पहरा है 
बाहर  धधकती ज्वालामुखी अन्दर है 

कुछ मिल जाए ऐसी किस्मत नहीं रही 
कुछ पाने की भी अब चाहत नहीं रही 
वक़्त के रहम-ओ-करम पर जिंदा अब मुक़द्दर है ....

- स्नेहा गुप्ता 



Saturday, February 2, 2013

छोड़िये इस बात की चर्चा बेमानी है ......

छोड़िये  इस बात की चर्चा बेमानी है 
किसका खून खून है, किसका खून पानी है 

जज्बातों को बेचकर उसने यह दौलत पाई है 
अब इस जहाँ में कौन उसका सानी है 

गरीबो के बच्चे कभी खूबसूरत नहीं होते 
इस दुनिया में बस दौलत का ही चेहरा नूरानी है 

हमारे  बस की बाते नहीं है ये सब 
इस दौलत से प्यार के किस्से और कहानी है 

उसकी नौकरी सिफारिशों के बीच दम तोड़ गयी 
अब उसे चोरी करने में क्यों शर्म आनी  है 

क्या फर्क उसके हाथो में बन्दूक हो या तलवार 
कौन जाने उसकी किस्मत में  भोजन कितना पानी है 

महसूस होते है जब किसी बेक़सूर के आंसू 
दिल सुलग उठता है बस इतनी परेशानी है 

छोड़िये इस बात की चर्चा बेमानी है 
किसका खून खून है किसका खून पानी है 

- स्नेहा गुप्ता