Sunday, March 17, 2013

हमेशा ..........

हर बात दिल में ही घुलती रही हमेशा 
रेत हाथ से फिसलती रही हमेशा 

ये आँखें जब तकदीर का आईना हो चली 
ख्वाहिशें अश्क़ बनकर पिघलती रही हमेशा 

मंजिलें सारी कोहरों में खो गयी 
राहें बेवज़ह ही चलती रही हमेशा 

बहारो को ही चमन से नफरत हो गयी 
बेरहम हो गुलो को कुचलती रही हमेशा 

जिन चिरागों का फ़र्ज़ ज़िन्दगी को रोशन करना था 
ज़िन्दगी उन्ही चिरागों से जलती रही हमेशा 

- स्नेहा गुप्ता 
14 February 2013
11:45PM


3 comments:

  1. बहारो को ही चमन से नफरत हो गयी
    बेरहम हो गुलो को कुचलती रही हमेशा ..

    बहारों को चमन से नफरत .. कोई दर्द उघड़ गया होगा ...
    अच्छा शेर है ... लाजवाब गज़ल का ...

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...!!!

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